मंगलवार, 24 अप्रैल 2012

कहानी- शाकाहारी चील को लूजमोशन












धूप  बहुत तेज थी और गरम हवाओं के थपेड़े मेरे पंखों को झुलसाते हुए से लग रहे थे, अप्रैल के महीने में ऐसी भयंकर गर्मी पड़ रही है. ये सब इंसानों का किया धरा है और हम सभी जीव जंतुओं को इसका फल भुगतना पड़ रहा है..  मैंने अपने पंखों को फिर से  फड़फड़ाया  और आकाश में थोडा और ऊपर उड़ने लगी, हम चीलों को आकाश में सबसे ऊपर उड़ना बहुत अच्छा लगता है जहाँ से सारा जहान  दिखाई देता है और हमे अपना शिकार भी दिखाई देता है. हमे ऊपर वाले ने सबसे तेज नज़र दी है जिससे हम आकाश में बहुत दूर उड़ते हुए भी अपने शिकार को ठीक से देख पाते हैं,  लेकिन कल कुछ ऐसा हुआ जिसकी वजह से मैं और मेरे नन्हे-नन्हे दोनों चूजे भूख से किलबिला रहे हैं और ऊपर से ये मुई धूप भी मेरा इम्तहान लेने पर तुली हुयी है जिंदगी कि तरह, 
हाँ, ठीक कह रही हूँ, जैसे बाकी सारे इम्तिहान सिखाये जाने के बाद होते हैं पर जिंदगी पहले इम्तिहान लेती है और बाद में सिखाती है इसी तरह ये धूप भी कल से कुछ ज्यादा ही तंग कर रही है, एक तो भूख और ऊपर से पंख झुलसाती हुयी ये गर्मी.. उफ्फ.. काश मैं भी इंसानों की तरह किसी ए.सी.लगे कमरे में आराम से गद्देदार बेड पर पड़ी होती अपने बच्चों के साथ..!   
तो कल की बात है मैं बच्चों का लंच लेने निकली थी तभी एक जगह ढेर सारे इंसानों का झुण्ड दिखाई दिया और ढेर सारी पूडी और सब्जी बिखरा हुआ देखा तो सोचा आज बच्चों को कुछ स्पेशल लंच करवाउंगी. ये इंसान जितना खाते नहीं हैं उस से भी ज्यादा तो अनाज बर्बाद कर देते हैं. मैंने अपने पंखों को समेट कर पेट से लगाया और अपने पंजों को मुट्ठी बंद कर के जमीन की तरफ खुद को छोड़ दिया, मैं किसी गिरते जहाज की तरह सीधी जमीन की तरफ काफी तेजी से जा रही थी, कानों में हवाएं सायें-सायें कर रही थी और मेरे बाल (पंख) उड़े जा रहे थे, सारा मेकअप हवा हुआ जा रहा था, मज़ा भी बहुत आ रहा था और जैसे ही मैं जमीन के नजदीक आने को हुयी मैंने अपने पंखों को पूरा फैला लिया और एक मस्त डाई लगाकर अच्छी सी लैंडिंग की, मैंने थोडा सा खुद खाया लेकिन मुझे अच्छा ना लगा तो मैंने अपनी चोंच और पंजों में कुछ पूड़ियों के टुकड़े इकट्ठे कर लिए और जैसे ही मैं उड़ने को हुयी तो देखा कि वहाँ पर मंच पर बड़े बालों की जटा और दाढ़ी वाला भगवावस्त्र पहने कोई साधू प्रवचन दे रहा था, मैंने सोचा क्यूँ ना थोडा सा प्रवचन भी सुनकर पुण्य कमा लिया जाये..
बस यही गलती हो गयी मुझसे, उस साधू महाराज ने लोगों को मांसाहार की बुराई बतानी शुरू कर दी और ईश्वर में ध्यान लगाने की बात कर रहा था, मुझे भी अच्छा लगा और मैं पूरा प्रवचन सुन कर घर आ गयी, मेरा घर तो एक सूखे पेड़ की सबसे ऊंची डाल पर बना मेरा घोंसला ही है. मैं उस साधू महाराज की बातों से काफी प्रभावित हुयी और वहाँ के लोगों की तरह ही मैंने भी कल से मांसाहार छोड़ कर शाकाहार अपनाने का सोच लिया था, लेकिन हाय री बेबसी, मुझे शाकाहार हज़म नहीं होता और मेरा लूज मोशन शुरू हो गया,
 मेरे दोनों बच्चों ने तुतलाते हुए मुझे मना किया था  ऐसा करने से और खाने की तलाश में निकलने पर.. लेकिन मेरी ममता भला कैसे मेरे पंखों की उड़ान को रोक सकती थी? 
सो मैं चली आई शहर शाकाहारी खाने की तलाश में, लेकिन यहाँ तो इन्सान खाने को ऐसी बुरी तरह बर्बाद करता है कि किसी के खाने लायक ही ना रहे, 
शहर के बाहर कुछ गाँव और कस्बे दिखे मगर वहां के खेतों में ऐसे कीटनाशक पड़े हैं कि उनको खा कर मरे चूहों को अगर मैंने और मेरे परिवार ने खाया तो हमारा भी राम नाम सत्य होते देर नहीं लगेगी? फिर क्या होगा मेरी नस्ल का? वैसे ही चील, कौवे, बाघ सब ख़त्म हो रहे हैं और जो थोड़े बहुत हम जैसे बचे भी हैं उनकी भी नस्ल ऐसे तो ख़त्म होते हुए ही दिख रही है. और फिर मैंने तो मांसाहार छोड़ने का सोच रखा है तो चूहे खा भी नहीं सकती.
बस ऐसे ही खोजते हुए पूरा दिन बीत गया.. और दुसरे दिन मैं बहुत कमजोर महसूस करने लगी, मैं उड़ भी नहीं पा रही थी ठीक से, तभी मेरी हालत देखकर एक कौवे ने काओं-काओं की कर्कश आवाज़ निकलते हुए मुझसे हाल पूछा तो मैंने उसे झिड़क दिया कि अपने काम से काम रखो दूसरे के मामले में टांग मत अडाओ.. 
एक तो सिर से लेकर पैर तक पूरा काला का काला रंग और ऊपर से इतनी कर्कश आवाज़ कि जी करता है उसका टेटुआ दबा दूँ.. जाने क्यूँ मुझे उसके रंग रूप और आवाज़ से ही चिढ सी है.. 
मैं घोंसले में पड़ी अपने बच्चों को कड़ी धूप से बचाने के लिए अपने पंखों में छुपाया हुआ था.. उन दोनों ने उस दिन की लायी पूडी को ही अब तक किसी तरह चलाया था  मगर अब उन्हें भी भूख लग रही थी और मैं अभी बेबस थी. 
फिर भी अपने बच्चों की खातिर मैंने हिम्मत जुटाकर अंगडाई लेते हुए पंखों को खोला और उड़ने को हुयी तभी कमजोरी कि वजह से मुझे चक्कर सा आ गया और मैंने पास के पेड़ की डाल पर ही खुद को सँभालते हुए उतारा.. ऊपर से बच्चे चिल्लाने लगे मैंने इशारा किया कि मैं ठीक हूँ, तभी फिर से कौवा आ गया और इस बार वो अपने चोंच में एक चूहा मारकर लाया हुआ था. इस बार उसने मुझे बोलने का मौका ही नहीं दिया और लगातार बोलने लगा.
"देखो बहन, तुम अभी बहुत कमजोर हो, और तुमने दो दिन से कुछ नहीं खाया, इसलिए पहले ये खाना खा लो और अपनी सेहत सुधार लो 
उसके बाद जी भर के उड़ान भरने चली जाना खाने की तलाश में"
मैंने कहा-"मगर ये तो.."
उसने बात को बीच में ही काटा और बोला-
"हाँ जनता हूँ, बड़ी आई साधू महाराज का प्रवचन सुनने वाली, 
अगर तुम ही नहीं रहोगी तो ये बच्चे कैसे जियेंगे? उनकी मौत का जिम्मेदार कौन होगा? 
और रही बात शाकाहार की तो ये सब इंसानों के लिए कहा जाता है, जो जीव जंतु मांसाहार पर ही टिका हुआ है भला उसे क्यूँ पाप लगेगा मांसाहार खाने से? 
सोचो अगर जंगल के शेरों ने हिरणों को खाना छोड़ दिया तो उसमे कमजोर और बीमार हिरण भी रहेंगे और अगर एक बीमार से सारे हिरनों में बीमारी फ़ैल गयी तो सभी हिरण मारे जायेंगे, 
और अगर कमजोर हिरण जिन्दा रहे तो उनसे पैदा हिरण ना तो तेज दौड़ सकेंगे ना बीमारी से लड़ ही सकेंगे.. जंगल के तो कानून ही अलग होते हैं और यहाँ पर सर्वश्रेष्ठ को ही रहने की इजाजत होती है, इसी लिए ऊपर वाले ने हर बार अलग फीचर और टेक्नोलजी वाले मोबाइल की तरह ही हर जीव को अपग्रेड करने के लिए ये सिस्टम बनाया है, तभी तो तरह-तरह की मुश्किल के बाद भी उसका डंटकर मुकाबला करने वाले जीव ही जंगल में जिन्दा रह पाते हैं.. परिवर्तन संसार का नियम है मगर तुम्हे जिस लिए बनाया गया है तुम उस काम को करना क्यूँ छोडती हो? कभी सोचा है कि अगर हमलोग छोटे मोटे जीव जंतुओं को खाना छोड़ दें तो इस धरती का कितना नुक्सान हो जायेगा? एक तो ये इंसान सारा पर्यावरण खराब किये हुए हैं और ऊपर से तुम भी अपना कर्म ना कर के पाप की ही भागी बनोगी, हर जीव जंतु को एक निश्चित काम सौंप कर ईश्वर ने इस संसार के चक्र को पूरा किया है इसमें से एक भी कड़ी टूट गयी तो ईश्वर का बनाया ये माला रूपी संसार ही बिखर जायेगा. 
तुम स्टाफ की हो, हम दोनों ही उड़ने वाले पंछी हैं तभी मुझे तुम्हारी ज्यादा चिंता है, 
मैं तो ये सब बातें शहर में जा कर सीख गया हूँ तभी सोचा तुम्हे भी समझा दूँ, मुझे तुम्हारे और तुम्हारे चूजों की हालत ना देखी गयी तभी ये शिकार तुम्हारे लिए ले कर आया हूँ.
चलो इसे खाओ और अपनी बचकानी जिद छोड़ कर अपनी नस्ल की रक्षा और अपने धर्म का पालन करो.. अगर तुम जैसे सभी चीलों ने मांस खाना छोड़ दिया तो मारे हुए जानवरों को कौन खायेगा? तुम ही तो सबसे पहले दूर से उनका पता लगाती हो और उसे खा कर गंदगी की सफाई भी करती हो, वरना मारे हुए जानवरों से तमाम तरह की बीमारी फैलने लगेगी 
और इससे जाने कितने बेगुनाह मारे जायेंगे..  "
उस काले कौवे की बातें और भाई का अधिकार जताकर समझाने से मेरी आँखों में आंसू आ गए थे..मैंने उसे नज़रे नीचे किये हुए कहा--
'' बस कौवा भाई बस, मैंने अपना महत्व समझ लिया है, मैं इस धरती की सफाई कर्मी हूँ और मुझे हमेशा साफ़ सफाई रखनी है मारे हुए जीव जंतुओं को खा कर.. 
और अब मैं अपना फर्ज हमेशा निभाउंगी.. मुझे माफ़ कर देना जो मैंने तुमसे तब ठीक से बात नहीं की..''
इस पर उसने कहा--''अरे छोडो बहना, लोग मेरे रंग और मेरी कर्कश आवाज़ से नफरत करते हैं और तुमने भी यही किया, 
किसी के बाहरी शरीर की सुन्दरता को देख कर नहीं उसके अंतर्मन की सुन्दरता को देखना चाहिए और हो सकता है कि किसी की बोली अच्छी  ना हो 
और वो अच्छी बात भी बोले तो बुरा लगे, मगर उसकी आवाज़ नहीं उसकी बात पर ध्यान देना चाहिए.. 
अच्चा चलता हूँ, बच्चों को स्कूल से लेन ला वक़्त हो गया, 
मेरे बच्चे अभी स्कूल में मिड डे मील का बना खाना खा रहे होंगे जो वहां के इंसानी बच्चों ने अच्छा ना लगने पर फेंक दिया होगा..
कल मिलता हूँ, अपना ख्याल रखना, बाय.."
और कौवे भैया ने पंख हिलाकर मुझे अलविदा कहा और स्कूल की दिशा में उड़ चला, 
मैं खुद को कोसती रही और उसकी बताई शिक्षा को जीवन में उतारने का संकल्प ले कर कौवे का लाया चूहा खाने लगी.. 
मेरे दिल में अब कौवे के प्रति ढेर सारा आदर भाव आ चूका था और मैं खुद के कर्त्तव्य को अच्छी तरह से समझ चुकी थी.




--गोपाल के.



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