मंगलवार, 26 अगस्त 2008

छंगा

बाढ़ ने चारो तरफ तबाही मचा रखी थी, बेचारा दुबला-पतला छंगा सोच रहा था कि जल्दी से कुछ खाने को मिले तो कुछ राहत मिले॥सोच रहा था अबकी बार बच गया तो नेताजी को वोट नहीं देगा,ये कोई बात हुयी? हर बार बोलते हैं कि अबकी बाढ़ से बचाने का इन्तजाम कर देंगे पर आज तक सिवाय आश्वासन के कुछ नहीं मिला उनसे..पूरा का पूरा गाँव रेल कि पटरी पर आ बसा था जैसे.. शुक्र था कि ऊँचाई थोडी अधिक होने से रेल कि पटरी तक पानी नहीं पहुच पाया था..वरना ये पानी जाने कहाँ बहा कर ले गया होता सबको..वही पानी पीना भी पड़ रहा था जिसमे तमाम मवेशी मर कर तैर रहे थे,और कर भी क्या सकते थे? जीने के लिए क्या क्या नहीं करना पड़ता इंसान को..?यही सोचता हुआ उसने सूरज की तरफ देखा जो कई दिन से लुका छिपी खेल रहा था गरीबों के साथ.. तभी उसको हेलीकाप्टर की गड़गडाहट सुनाई दी.., उसके होंठो पर ख़ुशी तैर गयी..बाढ़ राहत वाले आये होंगे चना गिराने.. सबके साथ वो भी उस तरफ दौड़ा जिधर हेलीकाप्टर चना वगैरह गिराने वाला था..जब छोटे छोटे बोरों में राहत वाले आसमान से चना गिराने लगे तो जैसे लूट मच गयी हो..सभी भूखे थे, ऐसे में तो जो ताकतवाला था वही सबको धकेल कर लूट सकता था राहत सामग्री को..बेचारा छंगा सोचा की ताकत से तो लड़ नहीं पाउँगा किसी से भी, दिमाग का ही इस्तेमाल किया जाये..उसने देखा भूरा एक बोरे के गिरते ही उसपर लेट गया की कोई और उसके बोरे को ना ले भागे,पर ये क्या? वो बोरे पर लेता ही रहा और बोरे का माल सब लोगों ने बोरे में छेद कर के निकाल भी लिया?ऐसे वक़्त में भी छंगा की होंठो में हंसी तैर गयी.. फिर उसको एक लम्बा सा पहलवान जैसा आदमी अपनी पीठ पर दो बोरे चने के लाड कर भागता दिखा, छंगा उसकी तरफ लपका और एक छोटे से चाकू से उसकी बोरी में छेद कर दिया.. गिरते चने को अपने गमछे में लपकता हुआ वो तब तक उस आदमी के पीछे दौड़ता रहा जब तक उसके परिवार के लिए भर पेट अन्न का उसे इत्मिनान नहीं हो गया..फिर वो चने ले कर अपने परिवार के साथ बैठ कर खाने के साथ सोचने लगा, अगर ऊपर वाले ने उसे ये थोडी सी अकाल और हिम्मत ना दी होती तो आज उसका परिवार भूखा ही रह जाता..

--गोपाल के.



बाढ़ के बाद

रात का समय था फ़िर भी चारो तरफ़ बाढ़ के पानी का भयानक और डरावना शोर था।
भिखुआ रात से पेड़ के ऊपर बैठा हुआ था, उसके बगल में ही पंडित जी भी बैठे थे पेड़ की डाल पर।
गाँव तो अब दिखता ही नहीं था, केवल मकानों के छप्पर और बड़े-बड़े पेड़ों की ऊपरी डाल ही नज़र आती थी। और नज़र आता था तो बिजली के उन खंभों का तार जिनमे बिजली तो आती नहीं थी पर बिल जरुर आता था।
तभी अचानक पेड़ पर ऊपर कुछ सरसराता महसूस हुआ, नीचे झाँक कर देखा तो एक सांप नज़र आया। शायद वो बेचारा भी अपनी जान इस पानी से बचने के लिए ऊपर चढ़ा आ रहा है, यही सोच कर भिखुआ ने थोड़ा सांप रास्ता दे दिया.
सांप ऊपर आकर उसके बगल में बैठ गया। वो ख़ुद भी सहमा दिख रहा था तो किसी को क्या काटता? पंडित जी नींद में थे पर इतने शोर में सो कैसे पाते ? सो वो ऊँघ रहे थे वरना अभी चिल्ला पड़ते सांप-सांप.

अचानक धडाम की आवाज से मैं सहम गया, ललुआ के मकान की दीवार ढह गई थी ये उसीके गिरने की आवाज थी॥
पंडित जी भी उठ गए और देखने लगे इधर उधर.
जब भिखुआ के साथ सांप देखा तो इशारे से बोले तेरे पीछे सांप है. भिखुआ बोला कोई बात नही, मुझसे पूछ कर बैठा है।
पंडित जी मुस्कुरा दिए।
भिखुआ के पास थोड़े चने थे, वो अपनी गठरी निकाल कर खाने को हुआ।
पर साथ में कोई और भी भूखा हो तो अकेले कैसे खा ले?
सो उसने पंडित जी से पूछा की वो खायेंगे?
पंडित जी भूखे तो थे मगर एक छोटी जाति वाले के हाथ से कैसे खा लेते?
लेकिन दो दिन से पेड़ पर भूखे बैठे थे टंगे हुए से.. और कोई चारा भी नही था।
फ़िर उन्होंने सोचा की खा लेते हैं कौन यहाँ पर देख रहा है? क्यूंकि अब भूख जवाब दे रही थी।
सो उन्होंने भिखुआ के साथ वो चने खा लिए और दोनों की भूख काफी हद तक शांत हो गई॥ और जहाँ पेट में थोड़ा अन्न जाता है फ़िर नींद भी आ ही जाती है।
तो दोनों ही सो गए और सांप बेचारा उन दोनों को देखता रहा और एक तरह से पहरा देता रहा।
सुबह चिडियों की आवाज़ ने उन दोनों की नींद खोली॥ देखा तो दूर से गाँव के लड़के केले के तने का बेडा (एक तरह का नाव) लिए उनकी तरफ़ ही आ रहे थे..पंडित जी ने शोर मचाया और जिसे सुनकर लड़के इसी तरफ़ आ गए।
जैसे ही बेडा पास आया पंडित जी लपक कर उसमे सवार हो गए और आदेश देते हुए बोले-" चलो रे॥"लड़को ने पूछा भी की क्या भिखुआ को नही लेंगे?
वो बोले दूसरी बार में ले लेना॥और चल दिए..बेडा दूर जा चुका था.. भिखुआ और सांप साथ बैठे उसे जाते देख रहे थे।
भिखुआ सोच रहा था की शुक्र है सांप में जाति प्रथा नही है।
और सांप सोच रहा था अच्छा हुआ मैं मनुष्य नही हूँ।

--गोपाल के।

गुरुवार, 14 अगस्त 2008

वंदे मातरम्

भारत हमको जान से प्यारा है॥
सबसे न्यारा देश हमारा है॥
एक सुंदर सा गीत है॥
जिसे सुनना चाहता हु आज आपको॥




http://in.youtube.com/watch?v=1vRHcmBYFX4&feature=related

अथ श्री गणेशाय नमः

जिस तरह से बगुला ध्यान धरकर पूरी तल्लीनता के साथ मछली पर ही नजर टिकाये घंटों तक सिर्फ़ एक ही पैर पर खड़ा होकर किसी तपस्वी की तरह तपस्या करता रहता है ठीक उसी तरह मैं भी कोशिश कर रहा हूँ कि इतनी ही एकाग्रता अपनी लेखनी में ला सकूँ।
अब कितना सफल होता हूँ ये तो आप ही बता सकते हैं।
पद्द के साथ गद्द लेखन में भी अपनी कलम की फिर से चलने की आतुरता देख कर सोचा कि चलो फिर से शुरू कर ही दिया जाये।
क्या होगा? ज्यादा से ज्यादा पढने के बाद आप यही कहेंगे ना
कि पहले लिखना तो सीख कर आओ,
तो ये सब सुनने ले लिए मै तैयार हू और साथ में
सुनाने को भी बिलकुल तैयार हूँ अपनी नयी नयी रचनायें।
पढ़ कर बताइयेगा कि कैसी लगी?
सच बोलियेगा चाहे अच्छी लगे या बुरी,
जरुरी नहीं कि जो बात पहले थी कलम में वो अब भी हो।
जो कमी हो साफ़-२ बताइयेगा..आपकी सच्ची प्रतिक्रिया के इंतजार में॥