मंगलवार, 24 अप्रैल 2012

मंहगाई डायन डसेगी डीजल और कॉल










पेट्रोल की तरह ही अब डीजल पर से भी सरकार ने अपना नियंत्रण हटा कर ये साबित कर दिया है कि वो बढती मंहगाई से लापरवाह है,
सरकार को न तो गरीबों के पेट कि चिंता है ना रसोई में कम होते राशन का.. आम आदमी जो पहले ही बजट के दायरे में रहकर किसी तरह घर चलता था अब तो अपनी बेबसी किसी को दिखा भी नहीं सकता, अमीरों पर कोई फर्क नहीं पड़ता, गरीब फटेहाल भी रहेगा तो कौन पूछने वाला है वो तो पहले से ही फटेहाल में जी रहा था, पर इस लगातार बढती मंहगाई का सबसे अधिक शिकार होता है आम मध्यमवर्गीय परिवार, क्यूँ कि उसे बैलंस बना कर चलना होता है, अमीरी के पायदान को वो छू नहीं सकता और गरीबी कि रेखा में वो आना नहीं चाहता, बस यही मज़बूरी उसे खाए जाती है.
मैंने हमेशा लिखा है कि सरकार चाहे तो पेट्रोल के दाम बढाती रहे ज्यादा असर नहीं होगा, लोग किसी ना किसी तरह आवागमन का साधन जुटा ही लेंगे, लेकिन अगर डीजल के दाम पेट्रोल कंपनियों के ऊपर छोड़ दिया जाता है तो वो तो लगातार इसके दाम बढ़ाएंगी ही और यही कहेंगी कि अभी भी हमारा घाटा हो रहा है.
अब बारी आएगी इसके बाद गैस  सिलेंडर से सब्सिडी हटाने की. और मुझे लगता है कि अगले साल तक ये काम भी बखूबी हमारी कांग्रेस सरकार कर ले जाएगी और कोई कुछ नहीं कर पायेगा, 
सभी बस ट्रेनों में, चाय और पान की दुकानों पर इस मुद्दे पर बहस करते रह जायेंगे और उनके जेब से निकला धन कितना विकास में खर्च होगा और कितना स्विस बैंक में जमा होगा इस से किसी को कोई लेना देना नहीं होगा. इतनी मंहगाई बढ़ गयी लोगों पर लगातार टैक्स का बोज़ बढ़ता गया मगर देश का कितना विकास हो गया ?
डीजल के दाम बढ़ने से माल धुलाई मंहगी होगी, क्यूँ कि ट्रक, लोडर, डीजल रेल से जो माल कि धुलाई होती है वो डीजल के दाम बढ़ते ही बढ़ जायेंगे, इसके बाद बारी आएगी हर चीज़ के दाम आसमान छूने की. दोगुना से तीनगुना तक हर चीज के दाम तो बढ़ने ही हैं हो सकता है इस से भी ज्यादा बढ़ जाये. हम और आप बस देखते रह जायेंगे जैसे पिछले 7 -8  साल से देखते आ रहे हैं,
हमारी जेब कट रही है और हम हैं कि अपना बजट ही कम करने में पूरा ध्यान लगाये हुए हैं. और हो भी क्यूँ ना? हम कौन सा जिम्मेदार नागरिक हैं जो देश और समाज कि चिंता करते हैं?
हमे तो सिर्फ और सिर्फ अपनी ही चिंता रहती है.
मेरा मानना है कि सरकार अगर सही निर्णय ले तो इतनी ज्यादा मंहगाई नहीं बढ़ सकती थी. जिस सब्जी के दाम थोक में चार रुपये होता है वही फुटकर में आते- आते पंद्रह बीस रुपये क्यूँ हो जाता है? क्या सरकार को इन बातों का पता नहीं है? या वो सिर्फ इन्टरनेट और फ़ोन पर ही अपना सारा ध्यान लगा बैठी है कि कौन हमारी बुराई करता है, हमारे खिलाफ बोलता है?
वैसे भी ये सरकार समस्या का कारण नहीं खोजती बल्कि उल्टा समस्या पर ध्यान दिलाने वाले को ही अपने सरकारी तंत्र का दुरूपयोग कर के परेशां करने लगती है, अन्ना जी और बाबा रामदेव इसके ताजा उदाहरण हैं, अगर साकार चाहती हो क्या बैठ कर इसपर निर्णय नहीं हो सकता था? भविष्य में जो कालाधन जमा करेगा उसपर कार्यवाही होगी पर जो पहले कालाधन जमा कर चुके हैं उनके बारे में क्यूँ ढील दी जा रही है? जनता में तो यही सन्देश जाता है इस से कि अब तक सबसे ज्यादा इन्होने ही देश में राज किया है यानि इनके ही सबसे ज्यादा नेताओं ने काला धन विदेशी बैंकों में जमा कर रखा होगा.. सरकार अगर खुद इस मुद्दे पर कोई कारगर कदम उठाती तो सरकार पर इतनी ऊँगलियाँ कदापि ना उठ रही होती.
अब बात करते हैं डीजल के दाम बढ़ने कि, तो सरकार बड़ी कारों को डीजल क्यूँ एक ही रेट पर देती है? कार वाला शख्स क्या आपकी सब्सिडी के लायक है? क्यूँ नहीं ऐसी कारों को डीजल से चलने पर पहले ही रोक लगा दी गयी होती? साफ़ है कि सरकार ने खुली छूट दे राखी है और लूट मची है यहाँ..
अब बात करते हैं गैस सिलेंडर की, तो पिछले कुछ सालों में कितने कार और वैन गैस से चलने लगे हैं ये आप सभी जानते हैं, इनके मालिक क्या करते हैं कि दिखने के लिए एक-दो लीटर सी.एन.जी. गैस पेट्रोल पम्प से भरवाकर उसकी पर्ची (रशीद) ट्रैफिक पुलिस को दिखने के लिए रख लेते हैं, और वाहनों की चेकिंग कैसे होती है  इस से आप सभी वाकिफ हैं, बस मुट्ठी गर्म कर दो वर्दी की और निकल लो धीरे से.. हम और आप एक गैस सिलेंडर कितने दिन चला लेते हैं? दिन नहीं महीनो चलता है ना? कम से कम दो से तीन महीने तो हर घर में चल ही जाता है मगर इन वाहनों में एक दिन में एक सिलेंडर इस्तेमाल हो जाता है, उनको तो कमाई करनी है इसी से तो वो ब्लैक में सिलेंडर खरीद लेते हैं और हमारा हक़ मार कर ऐश करते हैं, हमे गैस के लिए कतारों में या मुह्मंगे दामो को चुकाकर इसकी कीमत चुकानी पड़ती है, जब मुझ जैसे एक आम इंसान को ये हकीकत पता है तो क्या सरकार को इस बात का पता नहीं होता? मैं नहीं मान सकता, हरगिज़ नहीं..
तो क्यूँ नहीं सरकार ऐसे वाहनों पर सख्ती करती? ऐसे वाहन तो आसानी से चिन्हित किये जा सकते हैं जो गैस से चलते हैं.
मगर हम सब सरकार से ज्यादा जिम्मेदार हैं क्यूँकि हम सब कुछ देखते हुए भी उसकी अनदेखी करते हैं. अगर हम अपने आसपास ऐसे लोगों को घरेलु गैस का प्रयोग वाहनों में करते देखते हैं तो क्यूँ नहीं इसकी सूचना देते हैं? हाँ, मगर होगा क्या? जो कमा रहा है वो तो एक दिन का पैसा दे कर फिर से हमे चिढ़ता हुआ फिर और ताल थोक कर हमारे सामने ऐसा करने लगेगा.. बहुत ही ज्यादा भ्रष्टाचार फ़ैल चूका है जिसने अब हमारी जेबों को खली करना शुरू कर दिया है.. 
भ्रष्टाचार तो अमीरों कि ही दें लगती है, उन्हें कतारों में खड़ा होना पसंद नहीं ना, तो उन्होंने अलग से पैसे देकर अपना समय बचाने के लिए घूस के परम्परा कि नींव राखी होगी, और जब घूस लेने वालों ने उसे अपने घर के खर्चों में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया तो उनकी घरेलू जरूरतें बढ़ गयी  होंगी और फिर वो मजबूर हो कर औरों से भी घूस मांगने लगे होंगे, आम आदमी क़ानून का उतना ज्यादा जानकार नहीं है और हर कहीं उस से कोई ना कोई गलती हो ही जाती है और अगर उसका काम कानूनी ढंग से किया जाये तो इसमें काफी वक़्त लग जायेगा और उसका आने जाने का जितना किराया भाडा और परेशानी होगी उस से बचने के लिए उसने भी इसे स्वीकार कर लिया, अब तो हम सभी सरकारी विभागों में सरकार के काम करवाने का अलग से ऐसे घूसखोरों को पैसे दे आते हैं. और अब ये प्रथा बन गयी है, उनका हक़ बन चुकी है, कई विभागों में तो उनके ही कर्मचारियों को अपना ही वेतन, एरियर, डी.ए. , इन्क्रीमेंट, टैक्स और पेंशन बनवाने का खर्चा पानी देना पड़ता है, और इस से पुलिस महकमा भी अछूता नहीं रह गया है.. वास्तव में सीधा आदमी हर जगह ही परेशान है, और ये सब सिर्फ अव्यवस्थित होने से ही हो रहा है, अगर सभी एक संगठन बना कर चलें तो क्या नहीं हो सकता? बस एक सही शुरुआत की  देर है..
सरकार तो पहले आम जनता की आदत ख़राब कर देती है और उसके बाद हमे उसकी कीमत बढ़ाकर मजबूर करती है ज्यादा दाम चुकाने को, वरना लोग तो पहले कोयले और कंडे से ही खाना पकाया करते थे, लगता है अब फिर से घरों में सुबह शाम धुंआ उठता दिखने लगेगा.
अभी तक तो ये था कि लोग भले ही कम खाते थे इस मंहगाई कि वजह से, पर अपने नाते-रिश्तेदारों और दोस्तों से बात कर के जी हल्का कर लेते थे पर अब तो बातें भी मंहगी हो जाएँगी.. सभी मिस कॉल ही मरेंगे तो बात कैसे होगी? कुछ दिनों में लोग मिस कॉल से ही हालचाल लेने लगेंगे, हमने आपको मिस काल दी यानि मैं ठीक हूँ, आपने इसका उत्तर मिस कॉल से दिया यानि आप भी ठीक हैं..
आप जहां जायेंगे सरकार पीछे-पीछे मंहगाई डायन लेती आयगी और आपको डसती रहेगी, कब तक बचियेगा जनाब??


--गोपाल के.

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