गुरुवार, 14 अगस्त 2008

अथ श्री गणेशाय नमः

जिस तरह से बगुला ध्यान धरकर पूरी तल्लीनता के साथ मछली पर ही नजर टिकाये घंटों तक सिर्फ़ एक ही पैर पर खड़ा होकर किसी तपस्वी की तरह तपस्या करता रहता है ठीक उसी तरह मैं भी कोशिश कर रहा हूँ कि इतनी ही एकाग्रता अपनी लेखनी में ला सकूँ।
अब कितना सफल होता हूँ ये तो आप ही बता सकते हैं।
पद्द के साथ गद्द लेखन में भी अपनी कलम की फिर से चलने की आतुरता देख कर सोचा कि चलो फिर से शुरू कर ही दिया जाये।
क्या होगा? ज्यादा से ज्यादा पढने के बाद आप यही कहेंगे ना
कि पहले लिखना तो सीख कर आओ,
तो ये सब सुनने ले लिए मै तैयार हू और साथ में
सुनाने को भी बिलकुल तैयार हूँ अपनी नयी नयी रचनायें।
पढ़ कर बताइयेगा कि कैसी लगी?
सच बोलियेगा चाहे अच्छी लगे या बुरी,
जरुरी नहीं कि जो बात पहले थी कलम में वो अब भी हो।
जो कमी हो साफ़-२ बताइयेगा..आपकी सच्ची प्रतिक्रिया के इंतजार में॥



1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

JAB MAINE APNE DIL SE PUCHA
...."SAPNA KYA HOTA HAI...?
TO DIL NE KAHA....
"BAND AANKHO ME JO APNA HOTA HAI
KHULI AANKHO ME WAHI SAPNA HOTA HAI "

betab tamannao ki kasak rahne do,
manjil ko pane ki lalak rahne do ,
tum bhale hi door raho hamse ,
magar band aankhon mein apni jhalak rahne do



"Aye Khuda Aaj Ye Faisla Karde,
Use Mera ya Mujhe Uska Karde.
Bahut Dukh Sahe He Main nay,
Koi Khusi Ab Toh Muqadar Karde.
Bahot Muskil Lagta Hai Us say Door Rehna,
Judai Ke Safar Ko Kum Karde.
Jitna Door Chale Gaye Woh Mujhse,
Use Utna Kareeb Karde.
Nahi Likha Agar Naseeb Me Uska Naam,
To Khatam Kar Ye Zindagi aur Mujhe FANAA Karde"

Mera Dard