बाढ़ ने चारो तरफ तबाही मचा रखी थी, बेचारा दुबला-पतला छंगा सोच रहा था कि जल्दी से कुछ खाने को मिले तो कुछ राहत मिले॥सोच रहा था अबकी बार बच गया तो नेताजी को वोट नहीं देगा,ये कोई बात हुयी? हर बार बोलते हैं कि अबकी बाढ़ से बचाने का इन्तजाम कर देंगे पर आज तक सिवाय आश्वासन के कुछ नहीं मिला उनसे..पूरा का पूरा गाँव रेल कि पटरी पर आ बसा था जैसे.. शुक्र था कि ऊँचाई थोडी अधिक होने से रेल कि पटरी तक पानी नहीं पहुच पाया था..वरना ये पानी जाने कहाँ बहा कर ले गया होता सबको..वही पानी पीना भी पड़ रहा था जिसमे तमाम मवेशी मर कर तैर रहे थे,और कर भी क्या सकते थे? जीने के लिए क्या क्या नहीं करना पड़ता इंसान को..?यही सोचता हुआ उसने सूरज की तरफ देखा जो कई दिन से लुका छिपी खेल रहा था गरीबों के साथ.. तभी उसको हेलीकाप्टर की गड़गडाहट सुनाई दी.., उसके होंठो पर ख़ुशी तैर गयी..बाढ़ राहत वाले आये होंगे चना गिराने.. सबके साथ वो भी उस तरफ दौड़ा जिधर हेलीकाप्टर चना वगैरह गिराने वाला था..जब छोटे छोटे बोरों में राहत वाले आसमान से चना गिराने लगे तो जैसे लूट मच गयी हो..सभी भूखे थे, ऐसे में तो जो ताकतवाला था वही सबको धकेल कर लूट सकता था राहत सामग्री को..बेचारा छंगा सोचा की ताकत से तो लड़ नहीं पाउँगा किसी से भी, दिमाग का ही इस्तेमाल किया जाये..उसने देखा भूरा एक बोरे के गिरते ही उसपर लेट गया की कोई और उसके बोरे को ना ले भागे,पर ये क्या? वो बोरे पर लेता ही रहा और बोरे का माल सब लोगों ने बोरे में छेद कर के निकाल भी लिया?ऐसे वक़्त में भी छंगा की होंठो में हंसी तैर गयी.. फिर उसको एक लम्बा सा पहलवान जैसा आदमी अपनी पीठ पर दो बोरे चने के लाड कर भागता दिखा, छंगा उसकी तरफ लपका और एक छोटे से चाकू से उसकी बोरी में छेद कर दिया.. गिरते चने को अपने गमछे में लपकता हुआ वो तब तक उस आदमी के पीछे दौड़ता रहा जब तक उसके परिवार के लिए भर पेट अन्न का उसे इत्मिनान नहीं हो गया..फिर वो चने ले कर अपने परिवार के साथ बैठ कर खाने के साथ सोचने लगा, अगर ऊपर वाले ने उसे ये थोडी सी अकाल और हिम्मत ना दी होती तो आज उसका परिवार भूखा ही रह जाता..
--गोपाल के.


