शनिवार, 27 फ़रवरी 2010

मार गयी मंहगाई


मंहगाई नाम की सुरसा ने अपना मुंह यू.पी. में वैट लगने पर खोलना शुरू किया था, फिर जब छठवे वेतन आयोग की खबर अखबारों में आई तो उसे पढ़ कर सारे देश में व्यापारियों ने सभी चीजों के दाम बढ़ा दिए, आखिर सारे भारतवासी तो सरकारी कर्मचारी नहीं हैं, फिर कुछ लोगो के वेतन बढ़ने से पूरे देश को कैसे फर्क पड़ सकता है? और क्या सरकार इस से जुडी खबर को गुप्त नहीं रख सकती? इसे सार्वजानिक करने से जब इतना बुरा असर पड़ता है तो इसे केवल सरकारी कर्मचारियों तक ही सीमित क्यों ना रखा जाये? कहा तो ये जा रहा था कि जो सबसे निम्न श्रेणी का कर्मचारी होगा उसे १०००० तक वेतन मिलेगा, जिसे सुन कर सभी चीजो के दाम बढ़ा दिए चले, पर क्या वास्तव में इतना वेतन बढ़ा? जब राज्य सरकार ने इस बार दिवाली में बोनस नहीं दिया तो क्या उन व्यापारियों ने बढे हुए दाम कुछ कम कर दिए? कम नहीं कर सकते तो बढ़ा कैसे सकते हैं? जाहिर है सरकार अपने व्यापारियों के माध्यम से जनता का खून चूस रही है हर तरफ से हर तरह से बार-बार लगातार.. और जनता बेचारी मंहगाई का बोझ उठाती जा रही है बिना किसी गिले शिकवे के..
और अब फिर से मंहगाई बढ़ने वाली है, पेट्रोल डीजल के दाम बढ़ने से मंहगाई बढ़ना निश्चित है,
क्योंकि माल भाढ़े में वृद्धि होगी तो ढुलाई बढ़ने से हर चीज के दाम बढ़ेंगे ही..
देखते हैं अब जनता के चिल्लाने पर कौन से नए वित्त मंत्री बनाये जाते हैं, शायद उनके पास जादू की छड़ी हो जो मंहगाई कम कर सके, चिदंबरम तो हमेशा कहते थे कि उनके पास ऐसी कोई जादू कि छड़ी नहीं है..


गोपाल के. दास
कानपुर

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